Wednesday, July 13, 2016

हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बाद


हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बाद
बारे आराम से है अहले-जफ़ा मेरे बाद

मंसब-ए-शेफ़्तगी के कोई क़ाबिल न रहा
हुई मअ़ज़ूली-ए-अंदाज़-ओ-अदा मेरे बाद

शमअ़ बुझती है तो उस में से धुआँ उठता है
शोला-ए-इश्क़ सियहपोश हुआ मेरे बाद

ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल-ए-बुतां पर यानी
उनके नाख़ुन हुए मोहताज-ए-हिना मेरे बाद

दरख़ुर-ए-अ़र्ज़ नहीं जौहर-ए-बेदाद को जा
निगह-ए-नाज़ है सुर्मे से ख़फ़ा मेरे बाद

है जुनूं अहले-जुनूं के लिये आग़ोश-ए-विदा
चाक़ होता है गिरेबां से जुदा मेरे बाद

कौन होता है हरीफ़-ए-मै-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़
है मुकर्रर लब-ए-साक़ी में सला मेरे बाद

ग़म से मरता हूँ कि इतना नहीं दुनिया में कोई
कि करे ताज़ियत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा मेरे बाद

आये है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'
किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद

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